AIMIM सांसद इम्तियाज़ जलील ने दिया बड़ा बयान , बोले-‘ मैं मुस्लिमों का नहीं औरंगबाद का सांसद हूं’

बीते लोकसभा चुनाव में आल इंडिया मसलिज इत्तेहाद उल मुस्लिमीन ने सबको चौकाते हुए महाराष्ट्र के औरंगबाद से लोकसभा सीट जीती थी । यहाँ से आल इंडिया मजलिस इत्तेहाद उल मुस्लिमीन के जीतने के बाद सांसद इम्तियाज़ जलील का यहां की जनता को मुखातिब करते हुए बड़ा बयान दिया है । सांसद इम्तियाज़ ने चार बार से शिवसेना के सांसद चंद्रकांत खैरे को हराकर सुर्खियां बटौरी थी । बता दे , महाराष्ट्र में वंचित बहुजन अगाड़ी(VBA) और आल इंडिया मजलिस इत्तेहाद उल मुस्लिमीन (AIMIM) दोनों के औरंगाबाद से संयुक्त उम्मीदवार इम्तियाज़ जलील थे ।

आम चुनाव 2019 में VBA और AIMiM ने गठबंधन भी किया था । बता दे , VBA पार्टी संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर के पौते प्रकाश अम्बेडकर की पार्टी ही ,यह पार्टी 2018 में वजूद में आई थी । यह पार्टी दलित , आदिवासी और पिछड़े वर्ग की आवाज को उठाती रही है और इस पार्टी की औरंगाबाद सहित महाराष्ट्र में अच्छी पकड़ मानी जाती है ।पत्रकार से राजनेता बने इम्तियाज़ जलील को पार्टी मुख्यालय हैदराबाद से आप चुनाव के 1 महीने से भी कम समय पहले मे उन्हें औरंगबाद से सांसद प्रत्याक्षी घोषित किया था ।

AIMIM और VBA ने आम चुनाव में महाराष्ट्र में अपने मजबूत कैंडिडेट दिए। जिसके बाद कांग्रेस पार्टी के तरफ से उन पर तरह के बयान आते है और चुनाव के समय आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला चलता रहा । 2019 के लोकसभा चुनाव में इस गठबंधन ने कांग्रेस के आरोपों का करारा जवाब देते हुए पूरे महाराष्ट्र में 41 लाख से अधिक वोट प्राप्त किए इन में वह 1 सीट औरंगबाद की भी जीतने में कामयाब रहे । उन्हें कुल वोटों का तकरीबन 7.63% मिला , यह वोट प्रतिशत जब है तब दोनों ही पार्टी को इसके लिए ज्यादा समय नही मिला था ।

औरंगबाद के प्रत्यक्षी की घोषणा तो मात्र आम चुनाव के 28 दिन पहले हुई थी । यह सीट AIMIM ने जीती थी । औरंगबाद से इम्तियाज़ जलील की जीत के बाद डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर मराठवाड़ा (बीएमयू) के राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर ने इस पर अपनी राय रखते हुए कहा कि यह शिवसेना का हमेशा से गढ़ रहा है , चंद्रकांत यहाँ से 4 बार सांसद भी रहे है । महाराष्ट्र की राजनीति में 15 साल बाद किसी मुस्लिम सांसद का जीतकर आना अच्छा संकेत नजर आता है । 20 साल बाद मुस्लिम और दलित किसी सीट पर साथ आए और आज स्थिति बिल्कुल अलग है ।

इम्तियाज़ जलील ने विधायक के तौर पर बहुत शानदार कार्य किया है उनकी जीत ने बता दिया कि अल्पसंख्यक समुदाय बहुत कुछ कर सकता है । उन्होंने अपना इत्तेहाद दिखाया और दलितों ने अपना ,नतीजा सामने है । बता दे ,इम्तियाज़ जलील ने 23 साल तक पत्रकारिता की थी । वह एनडीटीवी में बतौर एंकर हुआ करते थे । वह जब एंकरिंग किया करते थे और राजनेता की रैलिया कवर करने जाते थे । उससे संबंधित याद ताजा करते हुए कहते है की मैंने रैलियां कवर करटीए हुए आज तक ऐसी विभाजन करने वाली राजनीति नही देखी थी ।

उन्होंने बाल ठाकरे की रैलियां भी कवर की है । वह मुस्लिम नामों को पुकारते और फिर मुस्लिम इसी में खुश हो जा या करते थे। वे रैलियों का आंनद लेते और घर को लौट जा या करते थे । इन सभी को देखकर जलील लगातार निराश होते चले गए है।वह यह भी देखते की कैसे विज्ञापनों के जरिये लोगों के माइंड सेट को बदला जाता है । वह एक पत्रकार के रूप में यह सब काफी पास से देख रहे थे ।

साल 2014 की बात है । महाराष्ट्र के बीड में एक सभा होनी थी । अमित शाह और पंकजा मुंडे का इंतिजार हो रहा था । इम्तियाज़ जलील इस सभा को कवर करने गए हुए थे वह यह याद करते हुए आगे कहते है । कार्यक्रम में चार घंटे की देर हो चुकी थी । उन्होंने सोचा आखिर में अब क्या करू ? उनके मन मैं ऐसे ही अजीबोगरीब सवाल घूमने लगे । वह कहते है कि मैंने सोचा कि आज मुझे 23 साल हो गए है आज भी मैं यह रिपोर्टिंग ही कर रहा हु और मेरे पास बैठे नए पत्रकार भी यही कर रहे है । उनकी सोच का दायरा अब धीरे धीरे बढ़ने लगा था ।

उस समय औरंगबाद के नवनिर्वाचित सांसद पुणे में NdTV में कार्य कर रहे थे ,यह 2014 लोकसभा चुनाव की बात है । उन्होंने बीड की इस रैली के बाद घर जाकर काफी सोच विचार के बाद आखिरकार Ndtv से इस्तीफा दे ही दिया । उन्होंने कहा मैने चैनल की रिटायरिंग अवधि को पूरी नही करते हुए तुरंत इस्तीफा देने का फैसला किया । पुणे से लौट ने के बाद उनकी योजना थी औरंगबाद में अपने परिवार के बाद कुछ वक्त बिताने की जो पूरी तरह सफल भी हुई । बता दे , इम्तियाज़ जलील ने पुणे के सिंबायोसिस इंस्टीट्यूट ऑफ मीडिया एंड कॉम्युनिकेशन में पढ़ाई पूरी की थी ।

जलील ने उस समय की शरद पवार की एक स्पीच का भी जिक्र करते हुए कहा था कि वह मुसलमानों के लिए हमेशा तैयार है और उन्हें टिकट भी दिया जाता है । लेकिन मुस्लिम उम्मीदवार च रित्र हीन होते है। जलील तो मानो राजनेताओं की हर बात को पकड़ लिया करते थे ,उनके इस जुनू न कि वजह से ही वह आज यहाँ तक पहुँचे है । जलील कहते है एक दिन उनका एक दोस्त उनके पास आया और उन्हें औरंगबाद से चुनाव लड़ने के लिए सुझाव देने लगा । जलील के दोस्त ने कहा आप औरंगबाद से चुनाव लड़िये ,दिक्कत कहा है ?

उस दोस्त ने आगे कहा आ प अभी फ्री है ,आपके पास जॉब भी नही है । जलील आगे कहते है मै ने अपने उस दोस्त की बातों से सहमति जताते हुए राजनीति में आने का निर्णय लिया । यह आश्चर्यजनक तो था लेकिन आखिरकार कामयाब रहा । जलील ने एक सभा को संबोधित करते हुए मुस्कुराकर कहा कि जब मै ने अपने परिवार को बताया कि वह राजीनीति में एंट्री करने जा रहे है तो घर मे सन्नाटा पसर गया । हैदराबाद की इस पार्टी AIMIM पर उस समय तरह तरह के इल्जाम लगा करते थे । वह पार्टी मुस्लिम के पक्ष में रहती है वगेरह वगैरह ।

जलील ने आगे कहा कि उस समय उन्हें नही लगता था कि ओवैसी को जानना जरूरी है या नही । उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानना कैसा है । ओवैसी के पास महाराष्ट्र में कांग्रेस या राष्ट्र वादी कांग्रेस जैसे नाम नहींथे । उनके लिए इसलिए ओवैसी के पास जाने का रास्ता सब्स आसान था जबकि वह यह पूरी तरह से जानते थे कि AIMIM में जाने से वह पूरी तरह से पहले कामयाब नही होगी जैसा वह सोच रहे है ।जैसा कि दूसरी नेशनल पार्टी में जाने से होता । जलील ने यह महाराष्ट्र में यह महसूस किया कि अब कांग्रेस और एनसीपी से लोग नही जुड़ना चाहते है ।

वह निराश है । वह इनसे दूर रहना चाहते है । जलील ने AIMIm में आने से पहले जान लिया था । जलील कहते है कि पहले लोग मेरे बारे में नही जानते थे लेकिन सब सब मेरे हर प्रोग्राम के बारे में जानते है । मेरे अभियान को समर्थको ने पूरी तरह से अलग कर दिया है।में उनका शुक्रगुजार हूं । जलील ने कहा कि युवा मुझे काफी पसंद कर रहे है । मुझे उनका समर्थन मिल रहा है । में रे साथ आज वह युवा है जैसा वह मुझे देखना चाहते है । वह चाहते है कि सभी को लाभ मिले । जलील ने कहा कि उनकी पार्टी पहले की औरं गबाद में एक तकनीकी विश्व विद्द्या लय का यम कर रही है ।

वह शहर को अब विकास की पटरी पर लौटाना चाहते है इसके लिए लगातार प्रयास कर रहे है । हम शहर में निजी एयरलाइंस को अच्छी सुविधा बढ़ाने के साथ साथ उस में ओर कनेक्टिविटी बढ़ना चाहते है । हम हमारे यहाँ से निकले अंतरार्ष्ट्रीय खिलाड़ि यों को ज्यादा से ज्यादा सुविधा के लिए तत्पर है । बता दे , 2019 के लोकस भा चुना व में इम्तियाज़ जलील ने स्थानीय मुद्दों को जमकर उठाया था जबकि शिव सेना के एमपी चंद्रकांत खैरे ने अपने चुनावी अभियान में नारा दिया था “बाण कहिए क्या खान पहिजे” यानी आप मुझे वोट देंगे या खान को ?

जलील ने लगातार स्थानिय मुद्दों को उठाया और उन्हें जेरेट मिली । वह लगातार अपने चुनावी अभियान में विकास की बात करते दिखे । जनता ने उनकी बातों को हाथों हाथ लिया। जलिल की जीत पर चर्चा हुई और कई इस परिणाम से आश्चर्यचकित भी हुए। लेकिन जलील कहते है उन्हें बिल्कुल भी ऐसा नही लगा वह उनकी जीत से आश्चर्यचकित नही है । वह कहते है मुझे पूरा यकीन था कि मैं जीतुगा अगर ऐसा नही सोचता तो मैं चुनाव के लिए खड़ा ही नही होता । जलील को 28 फिन पहले ही उम्मीदवार घोषित किया और उन्हें बड़ी जीत हासिल हुई।

उन्होंने कहा कि मैंने सभी समीकरण देखें और सोचा की मैं जेरेट सकता हु । मराठा वोट निर्दलीय उम्मीदवार हर्षवर्धन जाधव और शिवसेना के बीच विभाजित था । और वह इस बात को भी जानते थे कि शिवसेना के कुछ नेता उनके उम्मीदवार से नाराज चल रहे है । जलील कहते है कि खैरे और मुझे लगभग बराबर ही वोट मिले । करीब 4492 वोटों से कम अंतर से जीत मिली । जलील कहते है मैं मुस्लिम हूं लेकिन मैंने बतौर विधायक के रूप में अच्छा काम किया । सभी को लेकर साथ चला, इसका परिणाम यह हुआ कि 2019 में मुझे ब्राह्मणों ने भी वोट दिया ,मराठो ने वोट दिया ,दलितों ने भी वोट दिया । यह एक अच्छा संकेत दिखाई देता है ।

शिवसेना समर्थक सुनील कहते है मैं शिवसेना का समर्थक रहा हु लेकिन मैंने वोट जलील को दिया , मैं ऑटो रिक्शा चालक हूं । वह आगे कहते है वह मुस्लिम है , मुस्लिमों के नेता है लेकिन वह सिर्फ मुसलमानों की मद्दद नही करते है । वही बीएमयू के प्रोफेसर डॉक्टर हामिद खान ने औरंगबाद ने नवनिर्वाचित सांसद इम्तिजाज़ जलील के बारे में राय रखते हुए कहा कि अब मुसलमानों सोचने लगा है कि उन्हें भी लीड करने वाला कोई हो ।वह भी अब बेहतर प्रतिनिधत्व चाहता है ,जलील की जीत ये सब बताती है ।

2014 में मुस्लिम उम्मीदवार घटे थे लेकिन यह 17 वी लोकसभा में बढ़े है। 2014 के आम चुनाव में देश के 543 सांसदों में से सिर्फ 23 मुस्लिम ही संसद पहुँचे थे लेकिन अब यह संख्या 27 हो गई ।यह अच्छा संकेत है लेकिन इसमें ओर संख्या बढ़ने की भी बात होने लगी है । अब मुस्लिम नेताओं को आगे आने की जरूरत है ।अगर किसी नेता को प्रतिनिधित्व करना है तो वह अपने मे सुधार लाए ,गुणवत्ता लाए । जैसे जलील ने कर दिखाया है वैसे ही अन्य नेता भी कर सकते है यदि उनमें दृढ निश्चय हो ।

जिन मुस्लिम नेताओ ने अल्पसंख्यक को निराश आया है उन्हें अब सिरे से नकारने का दौर चल निकला है । कि सर्वे इसकी गवाही देते हुए नजर आते है अब मुस्लिमो को अच्छा प्रतिनिधित्व चाहिए। जलील कहते है की संसद में मुस्लिम सांसद देखना कोई बुरा नही है ।इनकी तादाद बाद सकती है अगर सभी लोग शामिल हो तो । अच्छा उम्मीदवार जो साफ सुथरी छवि रखता हो ,शिक्षित हो यह कार्य बड़ी आसानी से हो सकताहै । जलील अपनी बात लगभग खत्म करते हुए कहते है कि जब लोग मुझे मुस्लिमों का नेता कहते है तो मैं थोड़ा असहज हो जाता हूं । मैं मुस्लिम सांसद होने की बजाय औरंगबाद का सांसद कहलवाना पसंद करूंगा और मैं सभी के लिए कार्य करता रहूंगा ।

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