मुग’ल साम्रा’ज्य एक इ’स्ला’मी तु’र्क मं’गो’ल सा’म्राज्य’ था। जो 1526ईसवी में शुरू हुआ था। जिसका पतन 19 वी शता’ब्दी के मध्य तक हो गया था। भारत मे इस साम्रा’ज्य का संस्था’पक बाबर को कहा जाता है। वही बहादुर शाह जफर के वक्त मुगल सा’म्राज्य बहुत ही कम’जोर प’ड़ गया था।
यह दिल्ली तक ही समिति रहा। ऐसे तो बहादुर शाह जफर दूसरे मुगल शाशको से भी अलग थे क्योकि इन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ 1857 के सं’ग्राम का नेतृ’त्व भी किया था। वही इन्हें ब’दन’सीब मुगल बादशाह भी कहा जाता है। क्योकि इन्हें 132 सालों तक सही क’ब्र भी न’सी’ब नही हुई थी।

कहते है जब उन्हें द’फ़ना’या जा रहा था तो वहां 100 लोगो की भीड़थी जो कुछ बाजा’रों की जै’सी भी’ड़ लग रही थी। उन्हें कब्र में आम इंसानो की तरह ही द’फ नाया गया था ताकि उनकी पह’चान न हो सके। 132 साल के बाद जब एक खु’दाई के दौ’रान एक क’ब्र का पता चला तोअव’शे’षो और नि’शा”नि’यों की
वजह से पुष्टि हुई तो यह कब्र बहादुर शाह जफर की थी। इसके बाद बहादुर शाह जफर की दर’गाह साल 1994 में बनाई गई।बहा’दुर शाह जाफर अं’ग्रे’जो की लड़ाई में 1857 कई क्रांति में महासं’ग्राम के नेतृ’त्व का पूरा जिम्मा जाफर को सोपा गया था। इसमें जीत अंग्रे’जो की हुई थी

और 82 साल के जाफर को अपनी पूरी जिंदगी अंग्रेजो की कै’द में गु’जारनी भी पड़ी थी। बाद’शाह जा’फर को बहुत ही ज्यादा शे’री शाय’री का भी शौ’क था। यह उनके मुरीद थे। उनके दरबार मे दो बड़े शा’यर एक ग़ा’लिब और दूसरे जौक थे। वो खुद शा’यरी और ग’जल भी लिखा करते थे।