नमा’ज हर मु’स’ल’मा’न पर फ’र्ज है। न’मा’ज किसी भी हाल में माफ नही है। 7 साल की उम्र से ही न’मा’ज की पा’बं’दी का हु’क्म है। इ’स्ला’म के बुनियादी अर’का’नो में से सबसे पहले न’मा’ज है। 5 वक्त की न’मा’ज और’त और म’र्द दोनों ओर फर्ज है। यहां तक कि कहा भी गया है कि न’मा’ज किसी भी हाल में मा’फ नही है।
कु’रा’न म’जीद में अ’ल्लाह टा’ला ने जिस बात पर सबसे ज्यादा जोर दिया है वह नमा’ज है। यह सभी पर भी फ’र्ज है। यही वजह है कि हमारे न’बी ने बार बार ही अपनी उ’म्मत को न’माज पढ़ने के मुता’लि’क इरशा’द फरमाते हुए एक जगह नबी करीम ने फरमाया की का’फिर और मोमि’न के बीच मे एक फर्क है वह नमा’ज ही है।
इसके बाद एक जगह न’बी क’रीम सल्ला’ह अलै’हि वसल्लम ने इरशा’द फरमाया की जब मोमि’न स’जदे’ में होता है त रब उसके सबसे ज्यादा करीब भी होता है। आज हम आपको इस फरमान पर जारी एक रिसर्च के बारे में भी बताते है जब साइं’स दा ने एक नमा’ज पढ़’ने वाले शख्स के दिमा’ग के साथ ही
जदी’द मेडि’कल अ’लाट भी लगाए तो उन्हें क्या हैरतअंगे’ज भी हुए। यह रिसर्च मले’शिया की एक यूनिवर्सिटी में भी पेश किए गए है यूनि’वर्सिटी की टीम ने साइंस दानों ने क’याद’त में एक रिसेच कि जिसमे नमा’ज में म’श’रीफ अफ़’राद के दि’माग के हि’स्सों को न’माज के मुतालिक मुता’हिल क दर’मियान

यानी कि रुके, सजदे और क्यांम में दि’मा’ग के अंदर मौजूदअंद’रूनी सि’ग्नल का मु’ताला भी किया गया और तह’क़ीक़ से इस बारे में भी पता चला कि नमाज के दौरान बिल्कु’ल और स’जदे के दौरान अल्फा वेव इंफ’लि’टी में इ’जाफा भी हो जाता है