भारत आज भले ही विकसित देशों की तरह साधन सम्पन्न न हो लेकिन इस देश ने ऐसा सुनहरा दौर भी देखा है जब यह पूरी तरह साधन संपन्न भी था। इस देश को सोने की चिड़िया भी कहा जाता है। हमारे इतिहास में इसे नाम भी दर्ज है जो राज महाराज न होने के बाद भी
अपने धन दौलत के बल पर राज करते थे। ऐसेही एक व्यक्ति थे मुर्शिदा’बाद के जगत सेठ, जिन्हें सेठ फतहचन्द के नाम से भी जाना जाता है।आज केसमय में भले ही बंगाल के मुर्शिदाबाद शहर गुम’ना’मी के जी रहा हो लेकिन हर समय के लिए व्या’पारिक कें’द्र भी हुआ करता था।

हर तरफ ही उस स्थान के चर्चे भी हुआ करते थे। उस समय सभी लोग जगत सेठ के बारे में भी जनाते थे। माणिक चंद ने जिन्होंजे बंगाल के जगत सेठ परिवार की बुनियाद भी रखी थी। मुर्शिद कली खान बंगाल, बिहार और उड़ीसाके सूबेदारऔर माणिक चंद एकदूसरे के गहरे दोस्त भी थे।
इन दोनों ने मिलकर ही बंगला की नई राजधानी मुर्शिदाबाद को बसाया था।औरंगाजेब को 1 करोड़ 30 लाख की जगह पर दो करोड़ लगन भी भेजा था। 1715 ईसवी को मुगल सम्राट फ़ख्रुसियर ने माणिक चंद कोसेठ की उपाधि भी दी थी।

आकड़ो के मुताबिक साल1718 से 1757 तक इस्ट इंडिया कम्पनी जगत सेठकी फर्म से सालाना4 लाख रुपए भी क’र्ज भी लेती थी। डच और फ्रेंच कम्पनियों के साथ भारत के कई राजा महाराजा को भी यह फर्म क’र्ज देती थी। उस समय उस वक्त उनकी सम्पत्ति 1000 बिलियन पाउंड के करीब भी थी।