दिल्ली की साके’त कोर्ट ने ऐ’तिहा’सिक ध’रो’हर कुतुब मीनार को मं’दि’र बताने के दावे को खा’रि’ज कर दिया है। इसमें वादी का दावा था कि मोह’म्मद गौरी ने जैन और हिं’दु’ओं मं’दि’रों को तोड़ा था। उनके मलबे के बाद में कु’तुब मी’नार का नि’र्माण किया गया। इसकिए उन मू’र्ति’यों का पू’जा का अधि’कार मि’लना चाहिए।
इसमें एक ट्र’स्ट भी बनाया जाना चाहिए। एडवो’केट अ’सद ह’यात ने बताया है कि इसके ज’वाब में हम’ने अदा’ल’त में सा’क्ष्य रखते हुए इस बात की दलील दी है कि कु’तुब मीना’र और उसके पूरे कॉ’म्प्ले’क्स को 16 जन’वरी 1914 को भा’रत’ सर’कार द्वारे सर’का’री ग’ज’ट को प्र’जा’शीत
करके सं’र’क्षि’त स्मा’रक घो’षित किया गया था। उस वक्त में इस स्थ’ल पर किसी भी ध’र्म के अ’नुया’गी द्वारा पू’जा और इ’बा’दत न’ही होती थी।उन्होंने आगे बताया है कि नोटिफि’केशन 1914 में भी इस बात का जि’क्र न’ही है कोई धा’र्मि’क मू’र्ति’यों का वह वजू’द था। वा’दी ग’न ने बद’नीयतीसे
साल 2020 के आखिर में ए’क ट्र’स्ट ब’नाने, पू’जा का अधि’का’र दिला’ने और बाकी सं’र’क्षि’त इमा’रत यानी कि कुतु’ब मी’नार आदि को ह’टा’ने की अनुचित और गै’र कानू’नी मां’ग के साथ वा’दिग’न ने यह सूट दाखिल किया है।

आपको बता दे कि इस’को अब खा’रि’ज कर दिया गया है। अदा’लत में ट्रस्ट का पक्ष मु’ख्य रूप से वरि’ष्ठ अधिवक्ता मीर अख्तर हुसैन सा’हब ने रखा है। उनके सह’योगी के रु’ओ में आ’दिल एडवो’केट और श्री पंत भी उपस्थि’त हुए।