श’हीद न होते तो भारत के पहले मुस्लिम थलसेना अध्यक्ष होते ब्रिगेडियर उस्मान

लद्दाख से लेकर सि’या’चिन की घा’टियों हो या फिर जैस’लमेर की त’पती हुए रे’त हो। समंदर की लहर हो या फिर आसमान से आते हुए तू’फान हो इन सब ची’जों मि परवा’ह किए ब’गैर हमारे देश के कई सि’पा’हियों नेअ’पनी ‘जान को ग’वा दिया है।

भारत माँ के ऐसे ही वीर सि’पाही थे उस्मा’न जिन्हे नौ’शे’रा का शे’र भी कहा जाता है। जिनके ब’लि’दान को कभी भी भु’ला नही जा सकता है। नो’शेरा के इस शे’र ने महज 36 साल की उम्र में शौ’र्य की कथाएं लिखी है। वो भार’तदेश केइति’हास में आज भी अमर है।

ब’ता दे, कि ब्रिगे’डियर उस्मा’न 1948 की जं’ग में श’ही’द होने वाले सबसे बड़े भा’र’ती’य सै’नि’क अधि’कारी थे। उनकी शही’दत को आज ही 74 वर्स पूरे भी हुए ह। भार’त देश का यह सि’पाही 3 जुलाई 1948 को पा’कि’स्तान की सेना सेल्दत हुए शही’द हुए था।

जान’कारों का कहना है कि ब्रि’गेडि’यर उ’स्मान श’ही’द’ न होते तो देश के पहले मु’स्लि’म थलसे’ना प्रमुझ होते। उस्मा’न बहुत ही का’बिल अफ’सर थे। जब भार’त और पा’किस्ता’न देश का बंट’वारा हो रहा था तो उसके सामने मो’हम्मद

अली जि’न्ना की तर’फ से पर्स’नल ऑफर आया था कि वो पा’कि’स्तान आ’र्मी को ज्वा’इन करें। उस्मा’न ही अ’केले एक ऐसे सै’नि’क थे जिसके सरपर पाकि”स्तान ने 50 हजार रुपए का इना’म भी रखा था। जो सन 1947 में बहुत ही बड़ी र’कम थी।

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