गोब’र के मि’श्रण से उच्च कोटि की हा’इड्रो’जन गै’स भी बनती है। इसका आवश्यक प’री’क्ष’र’ण कर इस’का इस्ते’माल रॉ’केट के प्रोपेलर में ईंधन के रूप में भी किया जा सकता है। राष्ट्रीय प्रौ’द्योगि’की संस्था’न आदित्यपुर झार खंड में इस का शोध भी कर रहे हैं।
जमशे’दपुर से सटे आदि’त्यपुर में एनआ’ईटी की सहा’यक प्रो’फेसर दुला’री हे’म्ब्रम में बीते कुछ सालो से इस वि’षय पर शो’ध में भी जुटी हुई है। इसका शुरुआ’ती रिस’र्च पेप’र को प्र’स्तुत करते हुए उन्होंने दा’वा किया है कि यह सम्भव है। वह अभी दो और शो’ध पत्रज’मा करने वा’ली है

और अपने शो’ध के नि’ष्क’र्ष को लेकर भी उत्साहित है। दुला’री के मुता’बिक बता दे कि ईंध’न के रुप में इस्तेमा’ल होने वाली हा’इड्रो’जन गै’स के उत्पादन पर फिलहाल प्रति यूनिट सात रुपए का खर्च भी आ रहा है। उन्हीने कहा है कि अगर स’रका’र इसके उत्पा’दन के प्रोत्सा’हि’त करती है
तो इस’का उ’त्पा’दन बड़े पै’माने पर भी हो सकता है। यही नही इस रॉके’ट में उ पर्युक्त होने वाले ईंधन के स’स्ते विक’ल्प में रूप में भी विक’सित किया जा सकता है उनका शोध गो’मूत्र और गोब’र है। उनका कहना है कि कॉलेज की प्रयोगशा’ला बहुत ही छोटी है।

इस प्रोजे’क्ट को किसी सरकार की मदद भी नही मिल रही है। वह सर’कारी म’दद पाने के लिए अपने प्र’यास भी कर रही है। उन्होंने कहा है कि इस’का इस्ते’माल रॉकेट को प्रो’पेलर के ईंधन जे रूप में हो सकता है। दुलारी अभी प्रो’सेस भी कर रही है। साभार:- जागरण