एक जमाना था जब भारत,पा’किस्ता’न, बांग्ला’देश और ब’र्मा एक दूसरे से जुड़े हुए थे। यानी कि यह एक मु’ल्क थे और आज एक दूसरे से अलग है।अंग्रेजी ने साल 1857 पर दिल्ली पर क’ब्जा किया। मेजर हडसन ने मुग’ल शह’जादों का खू’न पि’या।
बहादुर शाह जफर ने 7 नवंबर 1862 को आ’खि’री सां’स ली और बादशाह को सिर्फ खैरा’त में मि’ट्टी में मिली।साल 1947 को हिंदुस्तान आ’जाद होता है इसके साथ ही ब’ट’वारा’ भी होता है। पा’कि’स्तान’ के प्रधानमंत्री रहते हुए मियां नवा’ज श’रीफ और राष्ट्रीपति रहते हुए अयूब खान, पर’वेज मु’शर्रफ़
और आसि’फ अ’ली जर’दारी ने ब’हादुर शा’ह ज’फर के म’जा’र पर हा’जरी दी और फू’ल भी चढ़ाए। इसके साथ ही बांग्ला’देश की प्रधान’मंत्री रहते हुए बे’ग’म खा’लिदा जिया ने ब’हा’दुर शा’ह जफ’र के म’क’ब’रे की जिया’रत की। लेकिन हिं’दुस्तान के आखिरी मु’गल बहा’दुर शा’ह जफ’र के
मजा’र पर हाजरी देने वालो में सबसे बड़ा नाम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का है। जिन्होंने अ’खंड भा’रत के ली’डर की हैसि’यत से रं’गीन में बहा’दुर शाह जफर की मजा’र पर आजा’द हि’न्द फ़ौ’ज के अफस’रों के साथ साल 1942 में सलामी दी थी और दिल्ली चलो का नारा दिया था।
बता दे कि आ’जाद हिं’द फौ’ज के सि’पा’ही कर्नल निजामुद्दीन ये हिसाब से सुभाष चन्द्र बोस वो इंसान थे जिन्होंने आखिरी मुगल शहंशाह बहादुर शाह जफर की क’ब्र को पूरी इ’ज्जत दिलाई। उनके मुता’बिक जफ’र की क’ब्र को सुभा’ष चन्द्र बोस ने पक्का करवाया था। वहां पर क’ब्रि’स्तान मे’ गेट लगवाया और उनकी क’ब्र के सामने चारदीवारी बनवाई थी।