टुंडे कबाब की कहानी, बेटियों को भी नहीं थमाई रेसिपी की चाबी, 115 साल पहले पहुंचा भोपाल से लखनऊ

टुंडा कबाब नॉनवेज खाने वालों के लिए यह एक ऐसी डिश है कि नाम लेते हुए ही मुँह में पानी आ जाता है। टुंडे कबाब लोक डाउन के वक्त इसकी दुकान बंद रही और जब खुली तो वह का सिग्नेचर डिश चिकम कबाब मेनू लिस्ट से ग़ा’यब था।

उसके बदले वहां लिख दिया कि मजबूरी के कबाब है। इसके पीछे की वजह यह है कि लोक डाउन में उसके बाद अनलॉक के फेज में शहर में वो मास नही उपलब्ध हो पा रहा था। जिससे गलावत कबाब बनाए जाते थे। इस दुकान 115 साल पुराने ग्राहक के मिजाज की है। जो मिल रहा है कि उसे ही ले रहे है।

उनका कहना है कि यहां जो मिलेगा, बेस्ट ही होगा। शायद इसी वजह से टुंडे कबाब भारत मे ही नही बल्कि दुनिया के स्वाद के लिए जाने जाते है।कहा तो यह भी जाता है कि अकबरी गेट का पता पूछने वाले ज्यादयर लोगो को टुंडे कबाब ही जाना होता है । इसने तरह शोहरत पाई है वैसी ही शोहरत किसी दूसरे

पकवान ने नही पाई है।टुंडे कबाब दुकान के मालिक।रईस अहंद है। उनके पुरखे हाजी साहब मध्यप्रदेश में रहा करते थे। वह वहां के नवाब के खानसामा हुआ करते थे। नवाब खाने और पीने के शौकीन थे। यह हाजी साहब का परिवार भोपाल से लखनऊ आ गए।

हाजी साहब ने दुकान को चलाने के लिए एक छोटी से दुकान खो ल ली। यह दुकान अकबरी गेट के पास एक गली थी। यहां वह कबाब बनाकर बेचते थे। यह कबाब बहुत ही स्वादिष्ट डिश है।

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